न बाप बड़ा न भैया, सबसे बड़ा रुपैया—-, सिद्धान्त अपनाओ, माल कमाओ

AJ डेस्क: माल (कोयला) किसी और का, पूंजी और सेटिंग किसी और की। फिर- “न रंग लगे न फिटकिरी, रंग चोखा होय” वाली कहावत को चरितार्थ कर हर जगह से कमीशन खाना है। अजीब बात है मुफ्त में कोई काहे देगा। यही तो खेल है काला हीरा के काले खेल का।

 

 

कोयलांचल में कुछ ही ऐसे दबंग हैं जो इस जोड़ी की दाल अपने यहां नहीं गलने देते। बाकि तो बाबा शरणम गच्छामि। कोयला के अवैध कारोबार की बात हो और दलाल चालीसा न हो, यह कैसे सम्भव है। तंत्र सेटिंग के दलाल, काला हीरा दिलाने वाले और फिर उसकी बिक्री कराने वाले दलाल। इन दलालों की भूमिका तो समझ में आती है लेकिन यहां जिस दलाल की बात हो रही है उसकी भूमिका समझ में नहीं आती फिर भी यह दलाल सक्रिय हैं और कारोबारी उनके आगे नतमस्तक भी। मीडिया में एक वर्ग है बाजा, बती और भोंपू की। पूरब पच्छिम के वजन की बात है। जनाब उससे जुड़े हुए हैं (काम कोई और करता है)। लेकिन बाजार तो बॉस का ही बना हुआ है। साहबों के यहां आना जाना लगा रहता है, अंदर किस मुद्रा में मिले, यह कौन देखता है। बाहर बाजार टाइट है। वर्दी के नजदीक हैं ही, खुद कलम के तीसमार खां हैं (भले एक पेज लिखना नहीं आता हो)। इतना काफी है कोयला चोरों को प्रभावित करने के लिए। इन्हें मंथली नहीं, हिस्सेदारी चाहिए और मिलता भी है।

 

 

इनके साझेदार हैं शांत अशांत निशांत—-। मेहनत करते हैं। जी टी रोड पर भटकते रहते हैं। सूचना तंत्र मजबूत है। अवैध कोयला से लदी ट्रक की सूचना मिल जाती है। फिर शुरू होता है हिस्सेदारी का खेल। शेयर दो वरना गाड़ी पकड़ाया। अवैध धंधेबाज पंगा लेने से बेहतर अवैध कमाई का छोटा हिस्सा इन्हें देने में ही भलाई समझते हैं। कहते हैं न– मुर्ख के पास पैसा हो तो चालाक भूखे नही रह सकता। यह जोड़ी भी लगभग हर अवैध डिपो में शेयर होल्डर बने हुए हैं।

 

 

पिछले दिनों कपूरिया ओ पी क्षेत्र में पुलिस ने एक डिपो से एक सौ टन कोयला सहित ट्रक, बाइक आदि बरामद किया था। डिपो संचालक का नाम सामने कुछ आया और प्राथमिकी भी दर्ज हो गयी। विश्वस्त सूत्रों ने बताया कि उक्त डिपो के असली संचालक यही दलाल की जोड़ी है।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

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