मूक बधिर बच्चे अपने जीवन में रौशनी लाने के लिए बना रहे खूबसूरत “दीया”
AJ डेस्क: कहते है ज्ञान की पाठशाला किसी मंदिर से कम नहीं होता। जहां ज्ञान प्रप्ति के लिए आने वाले शिष्यों को बिना किसी भेद-भाव के अपने भगवान स्वरूप गुरु जनों से ज्ञान स्वरूप वो वरदान प्राप्त होता है जो उनके भविष्य निर्माण का मूल आधार बनता है। लेकिन जब शिष्य सामान्य बच्चों से भिन्न हो यानि वो बच्चे स्पेशल (मुखबधिर) हो वैसे में गुरुओं का वरदान और भी फलदाई हो जाता है। आज हम आपकों एक ऐसे ही विद्यालय से रु-ब-रु कराने जा रहे है जहाँ शिक्षक वैसे बच्चों को दक्ष बनाने में जुटे हैं जो सुन और बोल नहीं सकते।
जरा इन दृश्यों पर गौर फरमाइये। इन आम दीपकों को ख़ास बनाते ये नंन्हे हाथ उनके है जो बोल औए सुन नहीं सकते। लेकिन इन्हें इस बात की जरा भी मलाल नहीं है। बल्कि ये बच्चे वो कार्य करने में भी माहिर है जो किसी आम बच्चे के लिए चुनौती से कम नहीं। इतना ही नहीं ये बच्चे इन सुन्दर और आकर्षक दीयों के अलावे मोमबत्ती, अगरबत्ती आदि भी बड़े ही खूबसूरत ढंग से बनाने में माहिर है। दरअसल इन दिव्यांग बच्चों ने अपने अंदर की कमियों को ही अपनी शक्ति के रूप में तब्दील कर दिया है। जिससे ये कोई भी कार्य बिना किसी परेशानी के शांत और एकाग्र होकर कर लेते है। और जो कार्य शांत और एकाग्रचित मन से किया जाए उसे तो फलीभूत तो होना ही है।
इन दिव्यांग बच्चों को दक्ष बनाने का कार्य धनबाद स्थित जीवन ज्योति विद्यालय के शिक्षकों द्वारा पूरे शिद्दत से किया जा रहा है। जीवन ज्योति की प्रिंसिपल अपर्णा दास बताती है कि उनके इस विशेष विद्यालय में 1 सौ 23 विशेष बच्चे शिक्षा ग्रहण कर रहे है जिसमें से 40 ऐसे ख़ास बच्चों को न सिर्फ शिक्षित किया जा रहा है बल्कि उन्हें दीया, मोमबत्ती, अगरबत्ती सहित और भी कई कार्यो में भी माहिर बना भविष्य के लिए तैयार किया जा रहा है।
स्कूल की प्रचार्य अपर्णा दास कहती है कि आज दीपावली जैसे त्योहारों पर हमारी परम्परागत मिट्टी के दीये चाइनीज सामानों के आगे दम तोड़ती जा रही है। ऐसे में इन ख़ास बच्चों के हाथों से तैयार किये गए ये विशेष मिट्टी के खूबसूरत दीये अवस्य ही उसमे जान फूंकने का काम करेंगे। उन्होंने बताया कि हर वर्ष ऐसे मौके पर यहाँ के बच्चे इस तरह के दीये, मोमबत्ती और अगरबत्ती आदि बनाते है जिसे मार्किट में उचित मूल्य पर बेच दिया जाता है और उनसे आए पैसों को चिल्ड्रेन्स डे के दिन इन बच्चों में बांट दिया जाता है। अपर्णा दास ने लोगों से अपील करते हुए कहा कि आप चाइनीज सामानों को छोड़े और हमारी सदियों पुरानी परंपरा को पुनः अपनाते हुए इन मिट्टी से बने खूबसूरत दीयों से अपने घरों को रौशन करें। ताकि आपकें साथ-साथ इन विशेष बच्चों का जीवन भी रौशनी से भर जाए।
इन कोमल हाथों द्वारा इन बेरंग दीयों में रंग भरते इन बच्चों के शिक्षक पवन कुमार बताते है कि ये बच्चे ऊपर वाले की नेमत है। बस इन्हें थोड़ा सा प्यार और आपके साथ की जरुरत होती है। उसके बाद ये बच्चे वो कर सकते है जिसे कर पाने में एक सामान्य बच्चे को वर्षो लग जाता है। उन्होंने कहा कि यहाँ विशेष बच्चों को ऐसी ख़ास तालीम दी जा रही है जिससे वो आत्मनिर्भर बन अपने भविष्य को रौशनी से भर सके।
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