वाह रे राजनीति: “राज” के लिए “राज” और झरिया-बाघमारा बल्ले बल्ले !

AJ डेस्क: कोयलांचल धनबाद माफिया नगरी के भाजपा में जिसके टिकट पर कोई बहस नही होनी चाहिए, वहां “राज” कायम है प्रचारित किया जा रहा है और जिसे सही में सैद्धांतिक आधार पर टिकट नही दिए जाने की पुरजोर आवाज उठानी चाहिए, वहां सब बल्ले बल्ले है।

 

 

 

 

धनबाद के विधायक और आगामी चुनाव में भाजपा के टिकट के प्रबल दावेदार राज सिन्हा के योग्यता पर ही प्रश्नचिन्ह लगाने का प्रयास किया जा रहा है लेकिन प्रश्नचिन्ह लगाने वालों के पास कोई न तो कोई ठोस आधार है और न ही कोई वजह। अनल ज्योति अब तक जो समझ पाया है कि राज सिन्हा को अयोग्य उम्मीदवार साबित करने वाले कुछ छुटभैया नेताओं की अपनी कोई न कोई वजह है, यह बात वह तो नही ही बोलेंगे लेकिन राज सिन्हा का यहां भी बड़प्पन है कि वह आलोचकों को उनकी भाषा में जवाब नही दे रहे। वर्षों भाजपा की राजनीति में सक्रिय भूमिका निभाने के पश्चात ही राज सिन्हा ने यह मुकाम हासिल किया है न कि वंशवाद और परिवारवाद में उन्हें यह गिफ्ट मिला है। धन बल और बाहु बल का भी फार्मूला उन्होंने नही अपनाया है। सालों भर जनता के बीच रहकर उनसे वोट मांगने का हक प्राप्त करने की नीति पर काम करने वाले नेता का यहां हर कोई टिकट ही कटवा रहा है।बंगाली में एक कहावत है- “देते होबे-देते होबे”, उनसे पूछा जाता है- “कि देतो होबे”, जवाब मिलता है- “आमी जाने नाई, नेता डाकबे”। यानि देना होगा देना होगा। पूछा जाता है-क्या (डिमांड) देना होगा। जवाब मिलता है- हमे नही मालूम, नेता से पूछना होगा। यही कहानी यहां चरितार्थ हो रहा है।

 

 

 

 

राजनीति में सभी चुनाव के वक्त पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ना चाहते हैं, यह गलत भी नही है। कोई प्रत्याशी, टिकट के दावेदार को इस भ्रम में रहना भी नही चाहिए कि उसका कोई प्रतिद्वंदी नही है। फिर धनबाद तो जिला मुख्यालय का सीट है। सभी जानते हैं कि धनबाद भाजपा के लिए सेफ सीट है फिर यहाँ तो टिकट के दावेदारों की संख्या बढ़ना लाजिमी है लेकिन इसका यह मतलब भी नहीं होता कि सीटिंग का कोई वजूद ही नही है।

 

 

 

 

 

विधायक, टिकट का दावेदार “राज सिन्हा” की छवि से आखिर कौन ज्यादा परेशान है। अब अनल ज्योति एक पुराने वाक्या की ओर आपका ध्यान आकृष्ट कराएगा। पिछले दिनों मुख्यमंत्री दो दिवसीय यात्रा पर धनबाद में थे। उनका सारा प्रोग्राम निर्धारित था। फिर CM के यहां आने के बाद किसने, किस स्तर से बड़ा गेम सजाया और CM के निर्धारित प्रोग्राम में फेर बदल करा दिया। CM को धनबाद में जहां सन्ध्या चार बजे तक आ जाना चाहिए था, वह लगभग पांच घण्टे विलम्ब से धनबाद विधान सभा क्षेत्र में पहुंच सके। दूसरे दिन सुबह दस बजे ही जन सभा का समय निर्धारित कर दिया गया। अनल ज्योति ने महसूस किया कि CM के समय में फेर बदल कर देने से राज सिन्हा की तैयारी धरी की धरी रह जाएगी और राज सिन्हा विफल साबित हो जाएंगे। ऐसा हो नही पाया। सभी जगह शांति से भीड़ जमा हुई और इस नेताजी का बल्ले बल्ले रहा।

 

 

मुख्यमंत्री रघुवर दास ने आज भी वंशवाद और परिवारवाद के विरोध में अपनी राय स्पष्ट किया है। CM के इस बयान को यदि गम्भीरता से लिया जाए तो झरिया में प्रत्याशी बदला जा सकता है। यदि एक सीट पर भाजपा वंशवाद, परिवारवाद को ताक पर रखकर टिकट दे देती है तो सिंदरी में यह फार्मूला क्यूँ नही लागू होगा। विधायक फूल चंद मण्डल के बेटा को भाजपा क्यों नही टिकट देगी। CM ठीक ही बोलते हैं कि जनता वंशवाद, परिवारवाद की राजनीति पसन्द नही कर रही। तो CM साहब झरिया में आप और आपकी पार्टी के इस कथनी का अग्नि परीक्षा हो जाएगा। मजे की बात है राज सिन्हा का टिकट कटवाने की चर्चा करने वाले, दावा ठोकने वाले झरिया और बाघमारा के मुद्दे पर क्यों नही बोलते।

 

 

दबंग, सजायाफ्ता, दुष्कर्म का प्रयास, कोयला क्षेत्र में दबंगई आदि आदि से अलंकृत ढुल्लू महतो के दावेदारी पर धनबाद भाजपा के उन नेताओं का कोई टिपण्णी क्यों नही आता जो राज सिन्हा पर व्यंग बाण छोड़ते रहते हैं। आखिर “राज” के पीछे साजिश रचे जाने और रचने वालों का भी”राज”एक दिन खुल ही जाएगा। वैसे भाजपा अपने 65+ फार्मूला के चक्कर में जो जो फंडा अपना रही है, उस दौर में कब और किसके साथ (टिकट) क्या होगा, कहना मुश्किल है।

 

 

 

 

 

 

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